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कहीं शबनम कहीं ख़ुशबू कहीं ताज़ा कली रखना | शाही शायरी
kahin shabnam kahin KHushbu kahin taza kali rakhna

ग़ज़ल

कहीं शबनम कहीं ख़ुशबू कहीं ताज़ा कली रखना

इन्तिज़ार ग़ाज़ीपुरी

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कहीं शबनम कहीं ख़ुशबू कहीं ताज़ा कली रखना
पुरानी डाइरी में क़ैद कर के ज़िंदगी रखना

ग़ज़ल भी रोज़ बिकती है यहाँ बाज़ार में लोगो
हिफ़ाज़त में नहीं मुमकिन है फन्न-ए-शायरी रखना

जो चालाकी से पढ़ लोगे तो चेहरा सब बता देगा
मिलाओ हाथ जब उस से नज़र चेहरे पे भी रखना

ज़रा तुम 'इंतिज़ार'-ए-ख़स्ता-जाँ का हौसला देखो
उसे भाता है बारिश में लिबास-ए-काग़ज़ी रखना