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कहीं सहरा में जो दरिया देखें | शाही शायरी
kahin sahra mein jo dariya dekhen

ग़ज़ल

कहीं सहरा में जो दरिया देखें

महशर बदायुनी

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कहीं सहरा में जो दरिया देखें
हम भी आईने में चेहरा देखें

हम मोहब्बत के लिए ख़ाक उड़ाएँ
लोग गलियों में तमाशा देखें

सब्र आ जाए अगर अपना ये हाल
जिन की ख़ातिर है वो तन्हा देखें

बंद आँखों में बड़ी वुसअत है
बंद आँखों ही से दुनिया देखें

घर है मौसम से बचाना मुश्किल
जानिब-ए-अब्र-ओ-हवा क्या देखें

इतनी दीवार-ए-गुलिस्ताँ न बढ़ाओ
कि बयाबाँ मिरा रस्ता देखें

अब यही शक्ल-ए-तमन्ना है कि हम
उम्र भर ख़्वाब-ए-तमन्ना देखें

हम बशर हैं न कि सहरा के शजर
जो सदा अपना ही साया देखें