EN اردو
कहीं पे चीख़ होगी और कहीं किलकारियां होंगी | शाही शायरी
kahin pe chiKH hogi aur kahin kilkariyan hongi

ग़ज़ल

कहीं पे चीख़ होगी और कहीं किलकारियां होंगी

सलीम रज़ा रीवा

;

कहीं पे चीख़ होगी और कहीं किलकारियां होंगी
अगर हाकिम के आगे भूक और लाचारियाँ होंगी

अगर हर दिल में चाहत हो शराफ़त हो सदाक़त हो
मोहब्बत का चमन होगा ख़ुशी की क्यारियाँ होंगी

किसी को शौक़ यूँ होता नहीं ग़ुर्बत में जीने का
यक़ीनन सामने उस के बड़ी दुश्वारियाँ होंगी

ये होली ईद कहती है भला कब अपने हाथों में
वफ़ा का रंग होगा प्यार की पिचकारियाँ होंगी

मुक़ाबिल में है आया एक जुगनू आज सूरज के
यक़ीनन पास उस के भी बड़ी तय्यारियाँ होंगी

सुखनवर का ये आँगन है 'रज़ा' शेरों की ख़ुश्बू है
ग़ज़ल और गीत नज़्मों की यहाँ फुल-वारियाँ होंगी