कहीं चर्चा हमारा हो न जाए
मोहब्बत आश्कारा हो न जाए
कहीं उस का नज़ारा हो न जाए
ये दिल क़ुर्बां हमारा हो न जाए
न देखो तिरछी नज़रों से ख़ुदारा
मिरा दिल पारा पारा हो न जाए
न पड़ जाएँ जिगर के अपने लाले
कहीं उस का इशारा हो न जाए
न देखो प्यार की नज़रों से डर है
हमारा दिल तुम्हारा हो न जाए
फ़िदा दिल ज़ुल्फ़-ए-शब-गूँ पर तुम्हारी
कहीं आफ़त का मारा हो न जाए
तुम्हें दिल दे तो दे 'ताबाँ' ये डर है
हमेशा को तुम्हारा हो न जाए
ग़ज़ल
कहीं चर्चा हमारा हो न जाए
अनवर ताबाँ