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कहीं चर्चा हमारा हो न जाए | शाही शायरी
kahin charcha hamara ho na jae

ग़ज़ल

कहीं चर्चा हमारा हो न जाए

अनवर ताबाँ

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कहीं चर्चा हमारा हो न जाए
मोहब्बत आश्कारा हो न जाए

कहीं उस का नज़ारा हो न जाए
ये दिल क़ुर्बां हमारा हो न जाए

न देखो तिरछी नज़रों से ख़ुदारा
मिरा दिल पारा पारा हो न जाए

न पड़ जाएँ जिगर के अपने लाले
कहीं उस का इशारा हो न जाए

न देखो प्यार की नज़रों से डर है
हमारा दिल तुम्हारा हो न जाए

फ़िदा दिल ज़ुल्फ़-ए-शब-गूँ पर तुम्हारी
कहीं आफ़त का मारा हो न जाए

तुम्हें दिल दे तो दे 'ताबाँ' ये डर है
हमेशा को तुम्हारा हो न जाए