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कहानियाँ भी गईं क़िस्सा-ख़्वानियाँ भी गईं | शाही शायरी
kahaniyan bhi gain qissa-KHwaniyan bhi gain

ग़ज़ल

कहानियाँ भी गईं क़िस्सा-ख़्वानियाँ भी गईं

किश्वर नाहीद

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कहानियाँ भी गईं क़िस्सा-ख़्वानियाँ भी गईं
वफ़ा के बाब की सब बे-ज़बानियाँ भी गईं

वो बाज़याबी-ए-ग़म की सबील भी न रही
लुटा यूँ दिल कि सभी बे-सबातियाँ भी गईं

हवा चली तो हरे पत्ते सूख कर टूटे
जो सुब्ह आई तो हीरा-नुमाइयाँ भी गईं

वो मेरा चेहरा मुझे आइने में अपना लगे
इसी तलब में बदन की निशानियाँ भी गईं

पलट पलट के तुम्हें देखा पर मिले भी नहीं
वो अहद-ए-ज़ब्त भी टूटा शिताबियाँ भी गईं

मुझे तो आँख झपकना भी था गिराँ लेकिन
दिल ओ नज़र की तसव्वुर-शिआरियाँ भी गईं