EN اردو
कहानी मेरी बर्बादी की जिस ने भी सुनी होगी | शाही शायरी
kahani meri barbaadi ki jis ne bhi suni hogi

ग़ज़ल

कहानी मेरी बर्बादी की जिस ने भी सुनी होगी

शांति लाल मल्होत्रा

;

कहानी मेरी बर्बादी की जिस ने भी सुनी होगी
नज़र में उस के इक तस्वीर-ए-हैरत खिंच गई होगी

सता लो जिस क़दर चाहो अदाओं से जफ़ाओं से
क़सम खाता हूँ गर होगी तुम्हीं से दोस्ती होगी

वफ़ा को भी मिरी हमदम जफ़ा ही जो समझते हैं
मुझे मा'लूम है इक दिन उन्हें शर्मिंदगी होगी

अरे नादान तुझ को काश ये मा'लूम हो जाता
कि तेरी दुश्मनी ही मेरी वज्ह-ए-दोस्ती होगी

बहारों में जुनूँ ने दे दिया मुझ को यक़ीं इतना
मिरी दश्त-ए-जुनूँ में भी तुम्हारी रहबरी होगी

शिकन बिस्तर के कहते हैं मरीज़-ए-हिज्र को हमदम
तड़पने की थकन से नींद आख़िर आ गई होगी

अरे 'शादाँ' मोहब्बत के निराले तौर होते हैं
जिसे तुम हुस्न कहते हो वो वज्ह-ए-बे-ख़ुदी होगी