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कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए | शाही शायरी
kahani likhte hue dastan sunate hue

ग़ज़ल

कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए

सलीम कौसर

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कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए
वो सो गया है मुझे ख़्वाब से जगाते हुए

दिए की लौ से छलकता है उस के हुस्न का अक्स
सिंगार करते हुए आईना सजाते हुए

अब इस जगह से कई रास्ते निकलते हैं
मैं गुम हुआ था जहाँ रास्ता बताते हुए

पुकारते हैं उन्हें साहिलों के सन्नाटे
जो लोग डूब गए कश्तियाँ बनाते हुए

फिर उस ने मुझ से किसी बात को छुपाया नहीं
वो खुल गया था किसी बात को छुपाते हुए

मुझी में था वो सितारा-सिफ़त कि जिस के लिए
मैं थक गया हूँ ज़माने की ख़ाक उड़ाते हुए

मज़ारों और मुंडेरों के रत-जगों में 'सलीम'
बदन पिघलने लगे हैं दिए जलाते हुए