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कहानी को मुकम्मल जो करे वो बाब उठा लाई | शाही शायरी
kahani ko mukammal jo kare wo bab uTha lai

ग़ज़ल

कहानी को मुकम्मल जो करे वो बाब उठा लाई

हुमैरा राहत

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कहानी को मुकम्मल जो करे वो बाब उठा लाई
मैं उस की आँख के साहिल से अपने ख़्वाब उठा लाई

ख़ुशी मेरी गवारा थी न क़िस्मत को न दुनिया को
सो मैं कुछ ग़म बरा-ए-ख़ातिर-ए-अहबाब उठा लाई

हमेशा की तरह सर को झुकाया उस की ख़्वाहिश पर
अंधेरा ख़ुद लिया उस के लिए महताब उठा लाई

समेटे उस के आँसू अपने आँचल में तो जाने क्यूँ
मुझे ऐसा लगा कुछ गौहर-ए-नायाब उठा लाई

मयस्सर था न कोई ख़्वाब इन आँखों में रखने को
सो मैं इन के लिए अश्कों का इक सैलाब उठा लाई