कहाँ तक दूर रह पाऊँगा ख़ुद से
मैं इक दिन मिलने आ जाऊँगा ख़ुद से
ज़मीं की वुसअतों को छोड़ दूँगा
वफ़ादारी निभा जाऊँगा ख़ुद से
बहुत मुश्किल है सहरा पार करना
तुम्हारे बिन न मिल पाऊँगा ख़ुद से
मुझे न रोक पाएगी ये दुनिया
मुझे लगता है टकराऊँगा ख़ुद से

ग़ज़ल
कहाँ तक दूर रह पाऊँगा ख़ुद से
अनवर ख़ान