EN اردو
कहाँ तक और इस दुनिया से डरते ही चले जाना | शाही शायरी
kahan tak aur is duniya se Darte hi chale jaana

ग़ज़ल

कहाँ तक और इस दुनिया से डरते ही चले जाना

अंजुम ख़लीक़

;

कहाँ तक और इस दुनिया से डरते ही चले जाना
बस अब हम से नहीं होता मुकरते ही चले जाना

मैं अब तो शहर में इस बात से पहचाना जाता हूँ
तुम्हारा ज़िक्र करना और करते ही चले जाना

यहाँ आँसू ही आँसू हैं कहाँ तक अश्क पोंछोगे
तुम उस बस्ती से गुज़रो तो गुज़रते ही चले जाना

मिरी ख़ातिर से ये इक ज़ख़्म जो मिट्टी ने खाया है
ज़रा कुछ और ठहरो इस के भरते ही चले जाना

वफ़ा-ना-आश्ना लोगों से मिलना भी अज़िय्यत है
हुए ऐसे तो इस दिल से उतरते ही चले जाना