कहाँ से ढूँढ के लाऊँ पुराने ख़्वाब आँखों में
कोई मंज़र नहीं टिकता मिरी सैराब आँखों में
न नींदें थीं न आँसू थे न ख़ुशियाँ थीं मगर तू था
कि अब तू भी नहीं आता है इन बे-ख़्वाब आँखों में
किसी भी आइने में अब मिरा चेहरा नहीं दिखता
मिरा चेहरा निकलता है इन्हीं बेताब आँखों में
जिसे ता'मीर का डर है चला जाए वो बिन बोले
जो हैं तय्यार सच को वो रहेंगे ख़्वाब आँखों में
दफ़ा कर इश्क़ का चर्चा कहीं तू भी न बह जाए
अभी तो बाँध के रक्खें हैं सब सैलाब आँखों में
ग़ज़ल
कहाँ से ढूँढ के लाऊँ पुराने ख़्वाब आँखों में
सावन शुक्ला