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कहाँ से आना है हर आदमी यहाँ तन्हा | शाही शायरी
kahan se aana hai har aadmi yahan tanha

ग़ज़ल

कहाँ से आना है हर आदमी यहाँ तन्हा

ख़लिश कलकत्वी

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कहाँ से आना है हर आदमी यहाँ तन्हा
रुला के हम को चला जाना है कहाँ तन्हा

यज़ीद-ए-अस्र ने घेरा है यूँ मुझे जैसे
मुक़ाबले में हो इक तेरे बे-कमाँ तन्हा

लगे हैं खे़मे वहीं आज कारवानों के
गया था शहर में थक कर जहाँ जहाँ तन्हा

ये कौन रहता है साए की तरह साथ मिरे
रह-ए-तलब में तो मैं हूँ रवाँ-दवाँ तन्हा

जो देखिए मिरे हमदम हैं मेरे साथ मगर
उठा रहा हूँ मैं बार-ए-ग़म-ए-जहाँ तन्हा

सुनो जो कहते हैं सरगोशियों में शहर के लोग
अमीर-ए-शहर से कब मैं हूँ बद-गुमाँ तन्हा

बुझाओ जल्द तुम्हारी भी वर्ना ख़ैर नहीं
कभी जला है चमन में इक आशियाँ तन्हा

ख़लिश किसी का सहारा बने कोई क्यूँ कर
यहाँ हर एक का होना है इम्तिहाँ तन्हा