कहाँ नसीब वो कैफ़िय्यत-ए-दवाम अभी 
कि मय-कशी है ब-क़ैद-ए-सुबू-ओ-जाम अभी 
हवास-ओ-होश को कहिए मिरा सलाम अभी 
जुनूँ को अक़्ल से लेना है इंतिक़ाम अभी 
न जा सकेगी वहाँ तक निगाह-ए-आम अभी 
मिरा मज़ाक़ बहुत है बुलंद-बाम अभी 
कुछ और लीजिए दार-ओ-रसन से काम अभी 
जुनूँ का जोश है फैला हुआ तमाम अभी 
ख़ुशी कहाँ कि ख़ुशी का नहीं मक़ाम अभी 
न मेरी सुब्ह अभी है न मेरी शाम अभी 
उसी तरह से है बे-रब्ती-ए-कलाम अभी 
फ़ुग़ाँ भी आई है लब पर तो ना-तमाम अभी 
है अहल-ए-होश का कुछ और ही पयाम अभी 
मगर मुझे तो है दीवाना-पन से काम अभी 
जहाँ में आने को आए तो इंक़लाब बहुत 
बदल सकी न सहर से हमारी शाम अभी 
उसी को हासिल-ए-उम्र-ए-वफ़ा बनाना है 
जो इक ख़लिश सी है दिल में बराए नाम अभी 
यहाँ तो दिन को भी तारीकियाँ बरसती हैं 
हमारी सुब्ह से अच्छी है उन की शाम अभी
 
        ग़ज़ल
कहाँ नसीब वो कैफ़िय्यत-ए-दवाम अभी
कलीम आजिज़

