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कहाँ महफ़िल में मुझ तक बादा-ए-गुलफ़ाम आता है | शाही शायरी
kahan mahfil mein mujh tak baada-e-gulfam aata hai

ग़ज़ल

कहाँ महफ़िल में मुझ तक बादा-ए-गुलफ़ाम आता है

एहसान दानिश

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कहाँ महफ़िल में मुझ तक बादा-ए-गुलफ़ाम आता है
जो मेरा नाम आता है तो ख़ाली जाम आता है

न आओ तुम तो फिर क्यूँ हिचकियों पर हिचकियाँ आएँ
इन्हें रोको ये क्यूँ पैग़ाम पर पैग़ाम आता है

ये सावन ये घटा ये बिजलियाँ ये टूटती रातें
भला ऐसे में दिल वालों को कब आराम आता है

अदब ऐ जज़्बा-ए-बेबाक ये आह-ओ-फ़ुग़ाँ कैसी
कि ऐसी ज़िंदगी से मौत पर इल्ज़ाम आता है

मदद ऐ मर्ग-ए-नाकामी नक़ाहत का ये आलम है
बड़ी मुश्किल से होंटों तक किसी का नाम आता है

ख़ुदा रक्खे तुझे ऐ सर-ज़मीन-ए-शहर-ए-ख़ामोशाँ
यहीं आ कर हर इक बेचैन को आराम आता है

मआ'ज़-अल्लाह मिरी आँखों का इज़हार‌‌‌-ए-तंग-ज़र्फ़ी
टपक पड़ते हैं आँसू जब तुम्हारा नाम आता है

ज़माने में नहीं दिल-दादा-ए-मेहर-ओ-वफ़ा कोई
तुझे धोका है ऐ दिल कौन किस के काम आता है