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कहाँ हम रहे फिर कहाँ दिल रहेगा | शाही शायरी
kahan hum rahe phir kahan dil rahega

ग़ज़ल

कहाँ हम रहे फिर कहाँ दिल रहेगा

मीर मोहम्मदी बेदार

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कहाँ हम रहे फिर कहाँ दिल रहेगा
इसी तरह गर तू मुक़ाबिल रहेगा

खुली जब गिरह बंद-ए-हस्ती की तुझ से
तो उक़्दा कोई फिर न मुश्किल रहेगा

दिल-ए-ख़ल्क़ में तुख़्म एहसाँ के बो ले
यही किश्त-ए-दुनिया का हासिल रहेगा

हिजाब-ए-ख़ुदी उठ गया जब कि दिल से
तो पर्दा कोई फिर न हाएल रहेगा

न पहुँचेगा मक़्सद को कम-हिम्मती से
जो सालिक तलबगार-ए-मंज़िल रहेगा

न होगा तू आगाह इरफ़ान-ए-हक़ से
गर अपनी हक़ीक़त से ग़ाफ़िल रहेगा

ख़फ़ा मत हो 'बेदार' अंदेशा क्या है
मिला गर न वो आज कल मिल रहेगा