कहा था मैं ने क्या तू ने सुना क्या
मगर इस बात का तुझ से गिला क्या
जो मेरे कर्ब से ग़ाफ़िल रहा था
उसी को अब कहूँ दर्द-आश्ना क्या
यही ठहरी है कश्ती डूब जाए
तो ऐसे में ख़ुदा क्या नाख़ुदा क्या
दिलों के राब्ते बाक़ी हैं जानाँ
तो फिर ये दरमियाँ का फ़ासला क्या
गली-कूचों में सन्नाटा है कैसा
'अली-'विज्दान' आशिक़ मर गया क्या
ग़ज़ल
कहा था मैं ने क्या तू ने सुना क्या
अली वजदान