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कह रही है ये क्या सबा कुछ सोच | शाही शायरी
kah rahi hai ye kya saba kuchh soch

ग़ज़ल

कह रही है ये क्या सबा कुछ सोच

नासिर ज़ैदी

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कह रही है ये क्या सबा कुछ सोच
ऐ हसीं पैकर-ए-जफ़ा कुछ सोच

चंद रोज़ा बहार पर मत जा
गुल का अंजाम क्या हुआ कुछ सोच

ये हसीं रुत ये चाँदनी ये बहार
ऐसे आलम में तो न जा कुछ सोच

क्या हुए रह-रवान-ए-मंज़िल-ए-शौक़
क्यूँ है सुनसान रास्ता कुछ सोच

ख़ार जिस से लिपट के रोते थे
आबला-पा वो कौन था कुछ सोच

हम न होंगे तो तेरी महफ़िल में
कौन होगा ग़ज़ल-सरा कुछ सोच

बिफरी लहरों पे छोड़ दी कश्ती
क्या किया तू ने ना-ख़ुदा कुछ सोच

रहबरी का भरम न खुल जाए
पा-शिकस्तों के रहनुमा कुछ सोच

किस को चाहे तिरे सिवा 'नासिर'
कौन है तुझ सा दूसरा कुछ सोच