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कफ़न की जेब भी ख़ाली नहीं है | शाही शायरी
kafan ki jeb bhi Khaali nahin hai

ग़ज़ल

कफ़न की जेब भी ख़ाली नहीं है

अब्दुर्रहमान मोमिन

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कफ़न की जेब भी ख़ाली नहीं है
ये बद-हाली है ख़ुश-हाली नहीं है

तो क्या ये फूल ख़ुद ही खिल गया था
जो कहता है कोई माली नहीं है

उन्हें मत देख ख़ुश रहने दे उन को
तिरी ख़ातिर ये दीवाली नहीं है

तिरी तस्वीर झूटी है मुसव्विर
मिरे शहरों में हरियाली नहीं है

वो घर गिरने लगा है जिस की हम ने
अभी बुनियाद भी डाली नहीं है

तो क्या मुझ को सज़ा देगा वो जिस ने
मिरी इक बात भी टाली नहीं है

तिरे बारे में जब सोचा तो देखा
ये रात ऐसी भी अब काली नहीं है

न कर 'मोमिन' यहाँ कोई तमाशा
ये दुनिया देखने वाली नहीं है