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कड़कती धूप में साया | शाही शायरी
kaDakti dhup mein saya

ग़ज़ल

कड़कती धूप में साया

मुमताज़ मालिक

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कड़कती धूप में साया
अँधेरों में उजाला है

कोई सानी नहीं उस का
मुझे जिस माँ ने पाला है

महज़ इक सीप थी मैं तो
गुहर उस ने निकाला है

हमेशा मुश्किलों में तो
इसी दिल को सँभाला है

मुझे जो मो'तबर कर दे
मिरी माँ का हवाला है

मुझे 'मुमताज़' करने को
दुआओं का वो हाला है