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कभी ज़ुहूर में आ जा कमाल होने दे | शाही शायरी
kabhi zuhur mein aa ja kamal hone de

ग़ज़ल

कभी ज़ुहूर में आ जा कमाल होने दे

साइम जी

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कभी ज़ुहूर में आ जा कमाल होने दे
जुनूँ को बाँध न मेरे धमाल होने दे

जो ख़ुद-कुशी भी करूँगा नहीं मरूँगा मैं
कुछ इस तरह से तू अपना विसाल होने दे

कहीं तो रख ले मुझे भी मिरी मोहब्बत भी
कि अपने दिल में बसा ले निहाल होने दे

मैं ख़ुद से लड़ने की रुत में तुम्हारा साथी हूँ
मुझे वजूद में उगने दे ढाल होने दे

ख़ुदा-ए-वस्ल ठहर जा अभी तड़पने दे
मचल मचल के ज़ुलेख़ा सा हाल होने दे

सिला ज़रूर है 'साइम-जी' हिज्र रातों का
किसी की याद में आँखें तो लाल होने दे