कभी उन का नाम लेना कभी उन की बात करना 
मिरा ज़ौक़ उन की चाहत मिरा शौक़ उन पे मरना 
वो किसी की झील आँखें वो मिरी जुनूँ-मिज़ाजी 
कभी डूबना उभर कर कभी डूब कर उभरना 
तिरे मनचलों का जग में ये अजब चलन रहा है 
न किसी की बात सुनना, न किसी से बात करना 
शब-ए-ग़म न पूछ कैसे तिरे मुब्तला पे गुज़री 
कभी आह भर के गिरना कभी गिर के आह भरना 
वो तिरी गली के तेवर, वो नज़र नज़र पे पहरे 
वो मिरा किसी बहाने तुझे देखते गुज़रना 
कहाँ मेरे दिल की हसरत, कहाँ मेरी ना-रसाई 
कहाँ तेरे गेसुओं का, तिरे दोश पर बिखरना 
चले लाख चाल दुनिया हो ज़माना लाख दुश्मन 
जो तिरी पनाह में हो उसे क्या किसी से डरना 
वो करेंगे ना-ख़ुदाई तो लगेगी पार कश्ती 
है 'नसीर' वर्ना मुश्किल, तिरा पार यूँ उतरना
        ग़ज़ल
कभी उन का नाम लेना कभी उन की बात करना
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर

