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कभी सर पे चढ़े कभी सर से गुज़रे कभी पाँव आन गिरे दरिया | शाही शायरी
kabhi sar pe chaDhe kabhi sar se guzre kabhi panw aan gire dariya

ग़ज़ल

कभी सर पे चढ़े कभी सर से गुज़रे कभी पाँव आन गिरे दरिया

अली अकबर अब्बास

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कभी सर पे चढ़े कभी सर से गुज़रे कभी पाँव आन गिरे दरिया
कभी मुझे बहा कर ले जाए कभी मुझ में आन बहे दरिया

गाता हूँ मेरे सुर में सुर मिल जाए उस की लहरों का
मेरी आँख में आँसू देखे तो फिर अपनी आँख भरे दरिया

मैं अपनी उसे सुनाता हूँ वो अपनी मुझे सुनाता है
मैं चुप तो वो भी चुप है और मैं कहूँ तो बात कहे दरिया

कहीं बर्फ़ लपेटे बैठा है कहीं रेत बिछा कर लेटा है
कभी जंगल में डेरा डाले कभी बस्ती आन बसे दरिया

ऐ दरिया! तेरा पाट बड़ा, ऐ दरिया! तेरा ज़ोर बड़ा
ऐ दरिया! गुम हो कर तुझ में क़तरे का नाम पड़े दरिया

ऐ शाएर! तेरा दर्द बड़ा ऐ शाएर! तेरी सोच बड़ी
ऐ शाएर! तेरे सीने में इस जैसा लाख बहे दरिया