EN اردو
कभी मुड़ के फिर इसी राह पर न तो आए तुम न तो आए हम | शाही शायरी
kabhi muD ke phir isi rah par na to aae tum na to aae hum

ग़ज़ल

कभी मुड़ के फिर इसी राह पर न तो आए तुम न तो आए हम

इन्दिरा वर्मा

;

कभी मुड़ के फिर इसी राह पर न तो आए तुम न तो आए हम
कभी फ़ासलों को समेट कर न तो आए तुम न तो आए हम

Turning back on that very road
You did not come,nor did I

Gathering together distances
You did not come,nor did I

जो तुम्हें है अपनी अना पसंद तो मुझे भी शर्त का पास है
ये ज़िदों के सिलसिले तोड़ कर न तो आए तुम न तो आए हम

If your ego is dear to you
I,too,must heed my oath

Breaking this chain of stubbornness
You did not,nor did I

उन्हीं चाहतों में बंधे हुए अभी तुम भी हो अभी हम भी हैं
है कशिश दिलों में बहुत मगर न तो आए तुम न तो आए हम

Bound in the same bonds of love
You remain, as I do

Despite the pull of our hearts
You did not come,nor did I

शब-ए-वस्ल भी शब-ए-हिज्र है शब-ए-हिज्र अब तो है मुस्तक़िल
यही सोचने में हुई सहर न तो आए तुम न तो आए हम

The Night of Meeting is the Night of Separation
The Night of Separation is a continuum

With these thoughts, morning comes
You did not come,nor did I

वो झरोके पर्दों में बंद हैं वो तमाम गलियाँ उदास हैं
कभी ख़्वाब में सर-ए-रहगुज़र न तो आए तुम न तो आए हम

Those windows are shut behind curtains
All those alleys are sad

Even on the pathway of dreams
You did not come,nor did I

उसी शहर की उसी राह पर थे हमारे घर भी क़रीब-तर
यूँही घूमते रहे उम्र भर न तो आए तुम न तो आए हम

On that same road,in the same city
Our homes once stood close beside

Wandering,we spent our lives
You did not come,nor did I

कभी इत्तिफ़ाक़ से मिल गए किसी शहर के किसी मोड़ पर
तो ये कह उठेगी नज़र नज़र क्यूँ न आए तुम क्यूँ न आए हम

Someday,perchance,if we meet
On a turning in some city

Our glances shall speak up
Why didn't you come,why didn't I