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कभी कुछ कहें ये इजाज़त ही दीजे | शाही शायरी
kabhi kuchh kahen ye ijazat hi dije

ग़ज़ल

कभी कुछ कहें ये इजाज़त ही दीजे

मधुकर झा ख़ुद्दार

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कभी कुछ कहें ये इजाज़त ही दीजे
न दीजे मोहब्बत अदावत ही दीजे

मिरी आँख का वो छलकना दिखा क्या
किसी रोज़ हमदम ये राहत ही दीजे

ज़माना दिखाता है ऐसी बलाएँ
कभी आप दिल को अक़ीदत ही दीजे

बताना है मुश्किल छुपाना है मुश्किल
करें क्या ओ रहबर नसीहत ही दीजे

तग़ाफ़ुल मिला है उसी राह पर यूँ
तवज्जोह न दीजे इनायत ही दीजे

उसे रौशनी का गुमाँ हो सवेरे
न 'ख़ुद्दार' को ऐसी ज़ुल्मत ही दीजे