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कभी कभी मैं उन्हें दिल में आन रखता हूँ | शाही शायरी
kabhi kabhi main unhen dil mein aan rakhta hun

ग़ज़ल

कभी कभी मैं उन्हें दिल में आन रखता हूँ

ओसामा अमीर

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कभी कभी मैं उन्हें दिल में आन रखता हूँ
फिर एक ख़्वाब में दोनों जहान रखता हूँ

जब आसमान सभी के सरों पे क़ाएम है
तो किस के वास्ते मैं साएबान करता हूँ

मैं लफ़्ज़-ओ-मा'नी बदलते हुए सर-ए-क़िर्तास
पलट के फिर वही नौहा बयान रखता हूँ

अज़ल से एक ही नुक़सान खा रहा है मुझे
अज़ल से ख़ुद को फ़क़त राएगान रखता हूँ

सदा-ए-कुन पे बिना आदमी की रक्खी गई
इस एक सौत पे मैं अपने कान रखता हूँ

अजीब रम्ज़ है क़िर्तास और लकीर के बीच
ज़मीन खींचता हूँ आसमान रखता हूँ

पुराना अक्स नया अक्स बन के उभरेगा
मैं आइने के मुक़ाबिल गुमान रखता हूँ

वो मेरे वास्ते क्या क्या सँभाले रखता है
मैं उस के वास्ते किस किस का ध्यान रखता हूँ