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कभी कभी चुप हो जाने की ख़्वाहिश होती है | शाही शायरी
kabhi kabhi chup ho jaane ki KHwahish hoti hai

ग़ज़ल

कभी कभी चुप हो जाने की ख़्वाहिश होती है

ख़ालिद इबादी

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कभी कभी चुप हो जाने की ख़्वाहिश होती है
ऐसे में जब तीर-ए-सितम की बारिश होती है

हाल हमारा सुनने वाले जाने क्या सोचें
यूँ भी कैसी कैसी ज़ेहनी काविश होती है

दीवारों पर क्या लिक्खा है पढ़ के बतलाओ
क्या ऐसी बातों पर यारो नालिश होती है

हम इस की तामील में दीवाने बन जाते हैं
दिल ऐसे नादाँ की जब फ़रमाइश होती है

दुनिया से इक रोज़ हमारी बात हुई छुप कर
सो बे-चारी की अब तक फ़हमाइश होती है

एक ही छत के नीचे चारों वहशी क्या बैठे
दानाओं ने समझा कोई साज़िश होती है

यूँ भी हम को शायर-वायर कहलाना कब था
शेरों में भी अपने झूटी दानिश होती है