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कभी जो मिल न सकी उस ख़ुशी का हासिल है | शाही शायरी
kabhi jo mil na saki us KHushi ka hasil hai

ग़ज़ल

कभी जो मिल न सकी उस ख़ुशी का हासिल है

ऐन इरफ़ान

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कभी जो मिल न सकी उस ख़ुशी का हासिल है
ये दर्द ही तो मिरी ज़िंदगी का हासिल है

मैं अपने आप से पीछा नहीं छुड़ा पाया
मिरा वजूद मिरी बेबसी का हासिल है

ये तीरगी भी किसी रौशनी से निकली है
ये रौशनी भी किसी तीरगी का हासिल है

हज़ार काविशें कीं पर नहीं समझ पाया
कोई बताए तो क्या आदमी का हासिल है

मिरा वजूद जो पत्थर दिखाई देता है
तमाम उम्र की शीशागरी का हासिल है

मुआ'शरे में जो मशहूर हो गया 'इरफ़ाँ'
वो एक शेर तिरी शाइरी का हासिल है