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कभी जो ख़त्म न हो ऐसी ताज़गी दे दी | शाही शायरी
kabhi jo KHatm na ho aisi tazgi de di

ग़ज़ल

कभी जो ख़त्म न हो ऐसी ताज़गी दे दी

अर्जुमंद बानो अफ़्शाँ

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कभी जो ख़त्म न हो ऐसी ताज़गी दे दी
तिरी वफ़ा ने नई मुझ को ज़िंदगी दे दी

हमारे पास था क्या और मता-ए-दिल के सिवा
तिरे सवाल पे वो भी ख़ुशी ख़ुशी दे दी

वो शख़्स कौन था जिस के ख़ुलूस-ए-पैहम ने
मिरी हयात को सूरज सी रौशनी दे दी

अजीब बात है जिस ने हयात माँगी थी
उसे तो मौत मिली मुझ को ज़िंदगी दे दी

मैं अपने दौर से किस दर्जा शर्मसार रहे
ग़ज़ब किया मुझे इरफ़ान-ओ-आगही दे दी

तड़प तड़प के जिए जिस के प्यार में 'अफ़शाँ'
उसी की याद में लो आज जान भी दे दी