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कभी दर्द-आश्ना तेरा भी क़ल्ब शादमाँ होगा | शाही शायरी
kabhi dard-ashna tera bhi qalb shadman hoga

ग़ज़ल

कभी दर्द-आश्ना तेरा भी क़ल्ब शादमाँ होगा

वासिफ़ देहलवी

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कभी दर्द-आश्ना तेरा भी क़ल्ब शादमाँ होगा
कभी नाम-ए-ख़ुदा तू भी तो ऐ कम-सिन जवाँ होगा

नहीं मालूम उन की जल्वा-गह में क्या समाँ होगा
नज़र जब कामराँ होगी तो ऐ दिल तू कहाँ होगा

वही इक साँस मदहोश हयात-ए-जावेदाँ होगा
जो आह-ए-सर्द बन कर सोज़-ए-ग़म का तर्जुमाँ होगा

लरज़ जाएँगे ये मज़लूमी दिल के तमाशाई
अगर ये ख़ाक का तो वो कभी आतिश-फ़िशाँ होगा

जो सोज़-ए-दिल से मुज़्तर हो के आएगा सर मिज़्गाँ
तो ख़ुर्शीद-ए-क़यामत मेरा अश्क ख़ूँ-चकाँ होगा

सितारे बन के चमकेंगे दिल बर्बाद के ज़र्रे
ये दिल बर्बाद हो कर भी दलील-ए-कारवाँ होगा