कभी भूल कर भी न बात की मुझे दिल से ऐसा भुला दिया
कहूँ क्या मैं तेरी शरारतें कि जिगर को तू ने जला दिया
वो बनाओ करने हैं बैठते तो सभों से लेते हैं ख़िदमतें
कभी मल दी मिस्सी रक़ीब ने कभी सुर्मा मैं ने लगा दिया
ग़म-ए-इश्क़ की सुनी दास्ताँ तो कलेजा थाम के यार ने
ये कहा कि क़िस्सा अजीब था मिरे दिल को उस ने कुढ़ा दिया
मिरे ख़त को उस ने न जब पढ़ा मिरे नामा-बर को भी ग़म हुआ
कहा मुद्दतों का जो आसरा था वो आज तुम ने मिटा दिया
कभी पूछा मैं ने बहिश्त को कि बताओ तो वो है किस तरफ़
तो 'शबाब' कूचा-ए-यार का मुझे ज़ाहिदों ने पता दिया
ग़ज़ल
कभी भूल कर भी न बात की मुझे दिल से ऐसा भुला दिया
शबाब