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कभी अंजुम उसे होश्यार तो कर | शाही शायरी
kabhi anjum use hoshyar to kar

ग़ज़ल

कभी अंजुम उसे होश्यार तो कर

मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम

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कभी 'अंजुम' उसे होश्यार तो कर
कोई नाला पस-ए-दीवार तो कर

दिल-ए-बेताब को तस्कीन तो हो
न दे बोसा मगर इक़रार तो कर

कहीं माशूक़ तो मशहूर तो हो
हमें रुस्वा सर-ए-बाज़ार तो कर

तुझे मालूम तो हो हाल मेरा
ज़रा आने का तू इंकार तो कर

इन्हें 'अंजुम' कभी तू देख तो ले
कसी दिन हाल-ए-दिल इज़हार तो कर