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कभी आहें कभी नाले कभी आँसू निकले | शाही शायरी
kabhi aahen kabhi nale kabhi aansu nikle

ग़ज़ल

कभी आहें कभी नाले कभी आँसू निकले

होश तिर्मिज़ी

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कभी आहें कभी नाले कभी आँसू निकले
उन से आग़ाज़-ए-सुख़न के कई पहलू निकले

यूँ भी वो बज़्म-ए-तसव्वुर से गुज़र जाते हैं
जैसे लय साज़ से या फूल से ख़ुश्बू निकले

है इस उम्मीद पे सैक़ल हुनर-ए-तेशा-ज़नी
सीना-ए-संग से शायद कोई गुल-रू निकले

क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन ही सही कुछ बात करो
किसी उनवाँ से तो ज़िक्र-ए-क़द-ओ-गेसू निकले

ग़म-ए-दौराँ ने किया अहल-ए-तमन्ना का वो हाल
दश्त से जैसे हिरासाँ कोई आहू निकले

हम जिन्हें 'होश' तजाहुल से ख़ता समझे थे
नावक-ए-नाज़ वो सब दिल में तराज़ू निकले