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कब वो सुनता है कहानी मेरी | शाही शायरी
kab wo sunta hai kahani meri

ग़ज़ल

कब वो सुनता है कहानी मेरी

मिर्ज़ा ग़ालिब

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कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी

when does she ever heed my state
and that too then when I narrate

ख़लिश-ए-ग़म्ज़ा-ए-ख़ूँ-रेज़ न पूछ
देख ख़ूँनाबा-फ़िशानी मेरी

of murderous glance ask not the pain
see tears of blood that my eyes rain

क्या बयाँ कर के मिरा रोएँगे यार
मगर आशुफ़्ता-बयानी मेरी

what else will friends relate, bemoan
but for my verses' distressed tone

हूँ ज़-ख़ुद रफ़्ता-ए-बैदा-ए-ख़याल
भूल जाना है निशानी मेरी

I roam in thought's deserts alone
by my forgetfulness I'm known

मुतक़ाबिल है मुक़ाबिल मेरा
रुक गया देख रवानी मेरी

my rival sits now face to face
he's flummoxed by my wit and grace

क़द्र-ए-संग-ए-सर-ए-रह रखता हूँ
सख़्त अर्ज़ां है गिरानी मेरी

me as a roadside rock they view
real low priced is my high value

गर्द-बाद-ए-रह-ए-बेताबी हूँ
सरसर-ए-शौक़ है बानी मेरी

whirlwind in paths of discontent
I'm wrought by gale of love's foment

दहन उस का जो न मालूम हुआ
खुल गई हेच मदानी मेरी

her mouth, to me, could not be known
my ignorance to all I've shown

कर दिया ज़ोफ़ ने आजिज़ 'ग़ालिब'
नंग-ए-पीरी है जवानी मेरी

me, feebleness does so debase
for dotage, my youth's a disgrace