कब कहा मैं ने मुझे सारा ज़माना चाहिए
सिर्फ़ मुझ को आप के दिल में ठिकाना चाहिए
अक़्ल कहती है कि उस को भूल जाना चाहिए
दिल ये कहता है उसे अपना बनाना चाहिए
जो हमारे बा'द आएँ कम से कम भटकें न वो
कू-ए-फ़न में इक दिया ऐसा जलाना चाहिए
ता-हद-ए-इम्कान हम ने ही मनाया है तुम्हें
हम कभी रूठें तो तुम को भी मनाना चाहिए
अपनी ख़ातिर छोड़िए औरों की ख़ातिर ही सही
कम से कम महफ़िल में तुम को मुस्कुराना चाहिए
राह तकते तकते उस की एक अर्सा हो गया
जाने वाले को तो अब तक लौट आना चाहिए
सोना चाँदी खा के 'साग़र' ज़िंदा रह सकते नहीं
ज़िंदा रहने के लिए तो आब-ओ-दाना चाहिए
ग़ज़ल
कब कहा मैं ने मुझे सारा ज़माना चाहिए
इमरान साग़र