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कब ग़ैर ने ये सितम सहे चुप | शाही शायरी
kab ghair ne ye sitam sahe chup

ग़ज़ल

कब ग़ैर ने ये सितम सहे चुप

नज़ीर अकबराबादी

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कब ग़ैर ने ये सितम सहे चुप
ऐसे थे हमें जो हो रहे चुप

शिकवा तो करें हम उस से अक्सर
पर क्या करें दिल ही जब कहे चुप

सुन शोर गली में अपनी हर दम
बोला कभी तुम न याँ रहे चुप

जब हम ने कहा 'नज़ीर' इस से
हम रहने के याँ नहीं गहे चुप

सोचो तो कभी चमन में ऐ जाँ
बुलबुल ने किए हैं चहचहे चुप