काट कर जो राह का बूढ़ा शजर ले जाएगा
साथ अपने धूप का लम्बा सफ़र ले जाएगा
एक सहरा बे यक़ीनी का है ता-हद्द-ए-नज़र
क़ाफ़िला-सालार देखें अब किधर ले जाएगा
अपने अपने ही घरों की फ़िक्र गर करते रहे
देखना तूफ़ान ये सारा नगर ले जाएगा
बे-घरों की फ़िक्र करने की ज़रूरत ही नहीं
एक दिन कोई फ़रिश्ता उन को घर ले जाएगा
कौड़ियों के मोल बिक जाएगा ख़ुद उस का वजूद
कोई जब बाज़ार में अपना हुनर ले जाएगा
जिस के दिल में कोई ख़्वाहिश कोई अरमाँ ही नहीं
साथ अपने बे-बहा ज़ाद-ए-सफ़र ले जाएगा
ये खुलेगा मुझ पे आख़िर मेरी मंज़िल है कहाँ
जब जुनूँ 'तासीर' मुझ को दर-ब-दर ले जाएगा

ग़ज़ल
काट कर जो राह का बूढ़ा शजर ले जाएगा
शर्मा तासीर