कासा-लेसों ने जो थी नज़्र उतारी तेरी
वही ले डूबी तुझे हश्त-हज़ारी तेरी
पूछा जाएगा दौर-ए-हुमायूनी का
रू-ब-कार आज है सरकार से जारी तेरी
उस का दीदार हमा-वक़्त इबादत मेरी
आँख ने दिल पे जो तस्वीर उतारी तेरी
हम ने हर सम्त बिछा रक्खी हैं आँखें अपनी
जाने किस सम्त से आ जाए सवारी तेरी
तर्क-ए-उल्फ़त का इरादा है मुसम्मम उस का
काम आई ही नहीं मिन्नत-ओ-ज़ारी तेरी
ज़र्ब-ए-पैहम का तसलसुल न अभी तोड़ 'सदीद'
इक नई ज़र्ब भी हो सकती है कारी तेरी
ग़ज़ल
कासा-लेसों ने जो थी नज़्र उतारी तेरी
अनवर सदीद