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कासा-लेसों ने जो थी नज़्र उतारी तेरी | शाही शायरी
kasa-leson ne jo thi nazr utari teri

ग़ज़ल

कासा-लेसों ने जो थी नज़्र उतारी तेरी

अनवर सदीद

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कासा-लेसों ने जो थी नज़्र उतारी तेरी
वही ले डूबी तुझे हश्त-हज़ारी तेरी

पूछा जाएगा दौर-ए-हुमायूनी का
रू-ब-कार आज है सरकार से जारी तेरी

उस का दीदार हमा-वक़्त इबादत मेरी
आँख ने दिल पे जो तस्वीर उतारी तेरी

हम ने हर सम्त बिछा रक्खी हैं आँखें अपनी
जाने किस सम्त से आ जाए सवारी तेरी

तर्क-ए-उल्फ़त का इरादा है मुसम्मम उस का
काम आई ही नहीं मिन्नत-ओ-ज़ारी तेरी

ज़र्ब-ए-पैहम का तसलसुल न अभी तोड़ 'सदीद'
इक नई ज़र्ब भी हो सकती है कारी तेरी