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कार-ज़ार-ए-दहर में क्या नुसरत-ओ-ग़म देखना | शाही शायरी
kar-zar-e-dahr mein kya nusrat-o-gham dekhna

ग़ज़ल

कार-ज़ार-ए-दहर में क्या नुसरत-ओ-ग़म देखना

क़मर सिद्दीक़ी

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कार-ज़ार-ए-दहर में क्या नुसरत-ओ-ग़म देखना
एक बस अपना अलम और अपना परचम देखना

इस तिलिस्म-ए-अस्र-ए-हाज़िर से जब आँखें जल उठीं
दूर जलता इक चराग़-ए-इस्म-ए-आज़म देखना

मुंतज़िर हैं रास्तों पर हादसे चलते हुए
खोल रखना अपनी आँखें और कम कम देखना

चाँद तारे और जुगनू और मिरा रंग-ए-हुनर
या'नी उस को याद करना उस को पैहम देखना

हिज्र की पुर-सोज़ रातें किस तरह आबाद हों
शाद हूँ शादाब हूँ ऐ मेरे हमदम देखना