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काँटे को फूल संग को गौहर कहा गया | शाही शायरी
kanTe ko phul sang ko gauhar kaha gaya

ग़ज़ल

काँटे को फूल संग को गौहर कहा गया

नो बहार साबिर

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काँटे को फूल संग को गौहर कहा गया
इस शहर में गदा को सिकंदर कहा गया

बे-चेहरा लोग हुस्न का मेआ'र बन गए
परछाइयों को नूर का पैकर कहा गया

जल्लाद को मसीहा-नफ़स की सनद मिली
इंसान-दुश्मनों को पयम्बर कहा गया

कुछ जिस के पास नीश-ओ-नमक के सिवा न था
चाक-ए-जिगर का उस को रफ़ू-गर कहा गया

क्या शय है मस्लहत भी शब-ए-तीरा-फ़ाम को
दानिशवरों में सुब्ह-ए-मुनव्वर कहा गया

गूँगा है कर रहा है इशारों में बात-चीत
'साबिर' को किस बिना पे सुख़नवर कहा गया