काँटे चुनना फूल बिछाना
रस्ता यूँ आसान बनाना
लाख जलाया उस ने लेकिन
ज़िंदा है फिर भी परवाना
उस को अपना कर लेना तो
या फिर उस का ही हो जाना
मशवरा भी कर लेंगे हम
पहले तो घर आ जाना
हुस्न तो इक दिन ढल जाता है
हुस्न पे इतना क्या इतराना
ठोकर में दुनिया रखा है
आया जिस को ठोकर खाना
जब ज़रा आँखें खुलती हैं
खुलता है पूरा मय-ख़ाना
लोग गहरा कर देते हैं
ज़ख़्म न अपना कोई दिखाना

ग़ज़ल
काँटे चुनना फूल बिछाना
हबीब कैफ़ी