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काला जादू फैल रहा है | शाही शायरी
kala jadu phail raha hai

ग़ज़ल

काला जादू फैल रहा है

प्रीतपाल सिंह बेताब

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काला जादू फैल रहा है
और ख़ुदा ख़ामोश खड़ा है

काले साए नाच रहे हैं
चार तरफ़ पुर-शोर हवा है

आग दिखा कर जलने वालो
किस की आग में कौन जला है

साँस भी तुम लेते हो क्यूँ-कर
उफ़ कितनी मस्मूम हवा है

लाखों भेड़ें दौड़ रही हैं
एक गडरिया हाँक रहा है

रक़्स-कुनाँ हूँ इक रस्सी पर
और तवाज़ुन बिगड़ रहा है

मैं रस्ते को ढूँड रहा हूँ
रस्ता मुझ को ढूँड रहा है

कौन है ये बेताब जो कब से
रस्ते में चुप-चाप खड़ा है