काफ़िर बुतों के नाम हों क्यूँकर तमाम हिफ़्ज़
इतने ख़ुदा कि हो न सकें जिन के नाम हिफ़्ज़
मतलब न ख़ब्त हो कोई फ़िक़रा न छूट जाए
क़ासिद ने हर्फ़ हर्फ़ किया सब पयाम हिफ़्ज़
रोना मिरा हो और भी बाइ'स सवाब का
पढ़ता हूँ सोज़ मैं ने किए हैं सलाम हिफ़्ज़
दोज़ख़ का डर नहीं है तो पत्थर की आग क्या
काफ़िर बुतो हमें है ख़ुदा का कलाम हिफ़्ज़
पीते ही याद आ गए भूले हुए सबक़
पूछो किसी मक़ाम से है हर मक़ाम हिफ़्ज़
मयख़ाने में नमाज़ जो की तू ने जल्द ख़त्म
सूरा बड़ा न था कोई तुझ को इमाम हिफ़्ज़
तुझ को क़फ़स में तेरी सुनाऊँगा गुफ़्तुगू
सय्याद बातें की हैं तिरी ज़ेर-ए-दाम हिफ़्ज़
किस को नहीं है क़द्र हमारे कलाम की
लोगों को है 'रियाज़' हमारा कलाम हिफ़्ज़
ग़ज़ल
काफ़िर बुतों के नाम हों क्यूँकर तमाम हिफ़्ज़
रियाज़ ख़ैराबादी