काएनात-ए-आरज़ू में हम बसर करने लगे
सब बहुत नफ़रत से क्यूँ हम पर नज़र करने लगे
तेरे हर लम्हे का हम ने आज तक रक्खा हिसाब
ये अलग है बात ख़ुद को बे-ख़बर करने लगे
ज़िंदगी को अलविदा'अ कह कर चला जाऊँगा मैं
जब मिरी तन्हाई मुझ को दर-ब-दर करने लगे
मुल्क की बर्बादियाँ उस वक़्त तय हो जाएँगी
जब बुरी तहज़ीब बच्चों पर असर करने लगे
या-ख़ुदा राह-ए-वफ़ा पर रहबरी करना मेरी
जब मुझे गुमराह मेरा हम-सफ़र करने लगे
छोड़ कर उस वक़्त ओहदे ख़ुद चला जाऊँगा मैं
शक जहाँ कोई मिरे ईमान पर करने लगे
इश्क़ के उस मोड़ को सब लोग कहते हैं जुनूँ
दिल किसी को याद जब शाम-ओ-सहर करने लगे
ग़ज़ल
काएनात-ए-आरज़ू में हम बसर करने लगे
चित्रांश खरे