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काबा तो संग-ओ-ख़िश्त से ऐ शैख़ मिल बना | शाही शायरी
kaba to sang-o-KHisht se ai shaiKH mil bana

ग़ज़ल

काबा तो संग-ओ-ख़िश्त से ऐ शैख़ मिल बना

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

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काबा तो संग-ओ-ख़िश्त से ऐ शैख़ मिल बना
कुछ संग बच रहा था सो उस बुत का दिल बना

इतना हुआ ज़ईफ़ कि मेरे मज़ार पर
जो बर्ग-ए-गुल पड़ा है सो छाती का सिल बना

हो कर सियह 'बक़ा' का सितारा नसीब का
रोज़-ए-नुख़ुस्त आरिज़-ए-ख़ूबाँ का तिल बना