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जुज़-निहालआरज़ू सीने में क्या रखता हूँ मैं | शाही शायरी
juz-nihaal-e-arzu sine mein kya rakhta hun main

ग़ज़ल

जुज़-निहालआरज़ू सीने में क्या रखता हूँ मैं

शकील जाज़िब

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जुज़ निहालआरज़ू सीने में क्या रखता हूँ मैं
कोई भी मौसम हो ये पौदा हरा रखता हूँ मैं

वर्ना क्या बंधन है हम में कौन सी ज़ंजीर है
बस यूँही तुझ पर मिरी जाँ मान सा रखता हूँ मैं

कार-ए-दुनिया को भी कार-ए-इश्क़ में शामिल समझ
इस लिए ऐ ज़िंदगी तेरी पता रखता हूँ मैं

मैं किसी मुश्किल में तुझ को देख सकता हूँ भला
दिल-गिरफ़्ता किस लिए है दिल बड़ा रखता हूँ मैं

बे-नियाज़ी ख़ू सही तेरी मगर ये ध्यान रख
लौट जाने का अभी इक रास्ता रखता हूँ मैं