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जूँ शम्अ दम-ए-सुब्ह मैं याँ से सफ़री हूँ | शाही शायरी
jun shama dam-e-subh main yan se safari hun

ग़ज़ल

जूँ शम्अ दम-ए-सुब्ह मैं याँ से सफ़री हूँ

क़ाएम चाँदपुरी

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जूँ शम्अ दम-ए-सुब्ह मैं याँ से सफ़री हूँ
टुक मुंतज़िर-ए-जुम्बिश-ए-बाद-ए-सहरी हूँ

ने गिर्या-ए-शब हूँ मैं न आह-ए-सहरी हूँ
जूँ बाँग-ए-जरस हम-नफ़स-ए-बे-असरी हों

जाता हूँ मैं जीधर को वो मुँह फेरे है मुझ से
गोया कि मैं गर्द-ए-क़दम-ए-रह-गुज़री हूँ

देखा न मैं जुज़-साया-ए-बाज़ू-ए-शिकस्ता
हिर्मां-ज़दा जूँ हसरत-ए-बे-बाल-ओ-परी हूँ

मैं पैरहन अपने मैं समाता नहीं जूँ गुल
जिस वक़्त से आमादा पए-जामा-दरी हूँ

सौ ख़िज़्र से कम-हौसला वाँ जी से गए हैं
जिस दश्त-ए-ख़तरनाक का मैं रह-गुज़री हूँ

जूँ सर्द रखा संग-ए-जफ़ा से मुझे आज़ाद
मरहून तिरा जी से मैं ऐ बे-समरी हूँ

क्या कम हूँ सिकंदर से अगर देखिए मुझ को
आईना-सिफ़त मालिक-ए-ख़ुश्की-ओ-तरी हूँ

किस बज़्म में देखी है वो झमकी कि मैं 'क़ाएम'
जूँ शम्अ सदा महव-ए-परेशाँ-नज़री हूँ