जूँ गुल तू हँसे है खिल-खिला कर
शबनम की तरह मुझे रुला कर
मेहमान हो या कि याँ तू आ कर
या रख मुझे अपने हाँ बुला कर
दर पर तेरे हम ने ख़ाक छानी
नक़्द-ए-दिल ख़ाक में मिला कर
मानूस न था वो बुत किसू से
टुक राम किया ख़ुदा ख़ुदा कर
किन ने कहा और से न मिल तू
पर हम से भी कभू मिला कर
गो ज़ीस्त से हैं हम आप बेज़ार
इतना पे न जान से ख़फ़ा कर
कुछ बे-असरों को भी असर हो
इतनी तो भला 'असर' दुआ कर
ग़ज़ल
जूँ गुल तू हँसे है खिल-खिला कर
मीर असर