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जूँ गुल तू हँसे है खिल-खिला कर | शाही शायरी
jun gul tu hanse hai khil-khila kar

ग़ज़ल

जूँ गुल तू हँसे है खिल-खिला कर

मीर असर

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जूँ गुल तू हँसे है खिल-खिला कर
शबनम की तरह मुझे रुला कर

मेहमान हो या कि याँ तू आ कर
या रख मुझे अपने हाँ बुला कर

दर पर तेरे हम ने ख़ाक छानी
नक़्द-ए-दिल ख़ाक में मिला कर

मानूस न था वो बुत किसू से
टुक राम किया ख़ुदा ख़ुदा कर

किन ने कहा और से न मिल तू
पर हम से भी कभू मिला कर

गो ज़ीस्त से हैं हम आप बेज़ार
इतना पे न जान से ख़फ़ा कर

कुछ बे-असरों को भी असर हो
इतनी तो भला 'असर' दुआ कर