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जूँ गुल अज़-बस-कि जुनूँ है मिरा सामान के सात | शाही शायरी
jun gul az-bas-ki junun hai mera saman ke sat

ग़ज़ल

जूँ गुल अज़-बस-कि जुनूँ है मिरा सामान के सात

वली उज़लत

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जूँ गुल अज़-बस-कि जुनूँ है मिरा सामान के सात
चाक करता हूँ मैं सीने को गरेबान के सात

चश्म-ए-तर हैं मिरी सहरा है जुनूँ की ममनूँ
रब्त है रोने कूँ मेरे इसी दामान के सात

बे-ख़ुदी का है मज़ा शोर-ए-असीरी से मुझे
रंग उड़े है मिरा ज़ंजीर की अफ़्ग़ान के सात

जूँ बगूला हूँ मैं मिन्नत-कश-ए-सहरा-गर्दी
ज़िंदगानी है मिरी सैर-ए-बयाबान के सात

'उज़लत' इस बाग़ में लाला सा हूँ मैं दर्द-नसीब
दिल-ए-ज़ख़्मी से उगा दाग़-ए-नमक-दान के सात