जूँ गुल अज़-बस-कि जुनूँ है मिरा सामान के सात
चाक करता हूँ मैं सीने को गरेबान के सात
चश्म-ए-तर हैं मिरी सहरा है जुनूँ की ममनूँ
रब्त है रोने कूँ मेरे इसी दामान के सात
बे-ख़ुदी का है मज़ा शोर-ए-असीरी से मुझे
रंग उड़े है मिरा ज़ंजीर की अफ़्ग़ान के सात
जूँ बगूला हूँ मैं मिन्नत-कश-ए-सहरा-गर्दी
ज़िंदगानी है मिरी सैर-ए-बयाबान के सात
'उज़लत' इस बाग़ में लाला सा हूँ मैं दर्द-नसीब
दिल-ए-ज़ख़्मी से उगा दाग़-ए-नमक-दान के सात
ग़ज़ल
जूँ गुल अज़-बस-कि जुनूँ है मिरा सामान के सात
वली उज़लत