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जुस्तुजू के सफ़र में रहते हैं | शाही शायरी
justuju ke safar mein rahte hain

ग़ज़ल

जुस्तुजू के सफ़र में रहते हैं

ओबैदुर् रहमान

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जुस्तुजू के सफ़र में रहते हैं
हम कि पैहम ख़बर में रहते हैं

हम को किस की नज़र में रहना था
और उस की नज़र में रहते हैं

आरज़ू तुम हमारी मत करना
हम दुआ के असर में रहते हैं

हम-नवा अपना कोई बन न सका
यूँ तो पैहम सफ़र में रहते हैं

कल तलक थे चराग़-ए-राहगुज़र
बुझ गए हम तो घर में रहते हैं

जुड़ रही है अमल से ये दुनिया
हम अगर और मगर में रहते हैं

ऐब क्यूँकर हों बे-हुनर में 'उबैद'
ऐब तो बा-हुनर में रहते हैं