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जुस्तुजू के पाँव अब आराम सा पाने लगे | शाही शायरी
justuju ke panw ab aaram sa pane lage

ग़ज़ल

जुस्तुजू के पाँव अब आराम सा पाने लगे

चन्द्रभान ख़याल

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जुस्तुजू के पाँव अब आराम सा पाने लगे
अब हमारे पास भी कुछ रास्ते आने लगे

वक़्त और हालात पर क्या तब्सिरा कीजे कि जब
एक उलझन दूसरी उलझन को सुलझाने लगे

शहर में जुर्म-ए-हवादिस इस क़दर है आज-कल
अब तो घर में बैठ कर भी लोग घबराने लगे

दिल में आ बैठा है देखो दूरियों का देवता
हम जमाअत के तसव्वुर से भी उकताने लगे

तुम किसी मज़लूम की आवाज़ बन कर गूँजना
याद मेरी जब तुम्हें शिद्दत से तड़पाने लगे

ले रहा है दर्द अंगड़ाई उठा वो एहतिजाज
ज़ख़्म-ख़ुर्दा सब परिंदे पँख फैलाने लगे

काम ऐसा क्यूँ किया जाए कि जिस के बा'द मैं
आदमी अपने किए पर आप पछताने लगे